जीती बाजी को हारी समझ बैठा,
जीवन की गाडी रूकी समझ बैठा।
सुख के साथ दु:ख भी बरसता,
उसे प्रभुकृपा की झडी समझ बैठा।
मानो इस पल में नहीं था शोर,
हालत को कुछ अच्छी समझ बैठा।
मेरी इस आयु में कहाँ मेरा हक!
उसको प्रभु से माँगी समझ बैठा।
‘सागर’ अक्ल मेरी, काम आये औरों
को,
मुझे भी किसी से मिली समझ बैठा।
- ‘सागर’ रामोलिया
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